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Thursday, 15 August 2013

मिटटी के घर है मिटने को तैयार है

दर्द होता है जताते नहीं है 
हम किसी को कुछ बताते नहीं है 
झुक जाता है सर सबके सामने 
हम खुद से नजरे अब मिला पाते नहीं है.  

अकेले हो गए है 
सब को खुश करने में मगन हो गए है 
अपना कुछ बचा नहीं 
दिल में जज्बा रहा नहीं 

कहाँ जाए 
किधर मूह छिपाए 
अब मिलने ka किसी से मन करता नहीं 
प्यार करना हमें अच्छा लगता नहीं 

समझे हमारी दिक्कत भी कोई 
समझे हमारे अनसु भी कोई 
हसी में छिपी हजारो ख्वाहिशे है 
tute पत्ते की तरह हमारे चाहते है 

गुस्से में लिख रहे है यह शायरी 
अश्क बह रहे है साथ में 
मंजिल कहीं खो गयी है 
हम रो रहे है यहाँ पे  
किसी ने कुछ समझना नहीं है 
हम हार गए  है  जहाँ  से 
शीशे के दिल है 
टूटने को तयार  है 
मिटटी के घर है मिटने को तैयार है 
कहीं नहीं है ठिकाना रैनबसेरे कमाल है ................................