"जब में नहीं रहूँगा"
क्या है कल, क्या आज है
आने वाला पल भी है कल
जाने वाला पल भी याद है
इन्ही पलों की यादों में बसी
दबी, भुजी एक आवाज़ है
सशक्त जिसकी आवाज़ है
पर छिपी जिसकी काबिलियत सबसे
इसलिए फीकी पड़ती उसकी याद है....
उन्ही यादों की साये से उठा हूँ
में धुंधली परछाई हूँ
यादों में बसी एक भुजी हँसी की तरह
में हवा में उड़ते एक एक पत्ते की तरह
आज हूँ, कल था और कल नहीं हूँ...
भूली बिसरी याद हूँ में
मिटती जाती जिसकी पहचान है
इन्ही किताबो की पंक्ति में
उठी "मुसाफिर" की आवाज़ है
आज इधर ठिकाना, कल अनजान है....
न जाने कब बीतेगा यह पल
इसी में गुजारे हजारो साल है
कल का क्या पता
आज ही मेरा संसार है
याद रखना न रखना यह तुम्हारा ऐतबार है
लहरों की तरह टकराता रहूँ तुमसे मरने के बाद भी
और आ जाये हसी लबो पे तुम्हारे मेरी याद से
यही मेरी ख्वाहिशो का अंजाम है
क्या है कल, क्या आज है
आने वाला पल भी है कल
पर जाने वाला कल शायद ही किसी को याद है......
शुक्रिया
Awesum one... i jus luvd it... simply luvd it... u write very nice.. keep writing..
ReplyDeleteThanx meghna...
ReplyDeletei knw u r a damn good writer...n ths work z again a terrific one...well done dost..keep it up..
ReplyDelete:)
ReplyDeletethnx huma...i ll keep myself up...