" सड़क और राह "
सड़क ने कहा राह से,
तू है कैसे मुझसे अलग,क्या है ऐसा तुझमे ,
क्यूँ है तू सबकी पसंद और में एक निर्जीव की तरह रहती हूँ क्यूँ अलग,
हर कवी की पसंद तू, हर इंसान की मंजिल का रास्ता तू
हर कोई लगत आस तेरी हर कोई में में क्यूँ नहीं
यह भेदभाव कैसा है जो न होकर भी होता है मेरी रूह को झिंझोर कर रख देता है,
आते है आंसू आँखों में रोज सुनकर लोगो की बातें
सोचती रहती हूँ, कि क्या है मेरा दोष.......
राह ने कहा होती मंजिल तय सबकी आस्मां में
ना दे तो इसमें किसी को दोष
में हूँ रूप तेरा ही दूसरा
तू सच्चाई है में सपना एक अच्छा
राह बन जाती है हर वोह सड़क
जब होती है उसमे ताकत जीतने की
में भी हूँ तेरा ही एक रूप, सड़क आम आदमी की राह मंजिल की
न हो अब उदास तू
नहीं हूँ में भी तुझसे अलग
दोष दिया है संसार ने भी मानकर मुझे गलत
हर वक़्त हर किसी का नहीं होता
इसी सड़क की तरह कभी टुटा फूटा
कभी साफ़ सुथरा होता
सड़क में और राह में है एक बहुत बड़ा फरक
लोग का गुस्सा उतरता राह पर
पर प्यार मिलता है तुझे ए सड़क....
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