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Tuesday 30 May 2017

कश्मकश

हाँ थोड़ा दर्द है, पहले से काफी अधिक है
सोचा उन्हें बताये, अपने गम हम भी किसी को सुनाये 
कश्मकश में हो रही मेरी अपने आप सी लड़ाई को, कोई तो सुलझाए

दो कदम हम आगे बड़े देखा उन्हें तो थम से गए 
वह खुश थे, खामोश दरवाज़े पर हम खड़े वापस मुड़ लिए
दीवार से कमर लगाए हम सोच में डूब गए 
की क्यों हम किसी को अपना दुःख दे और उन्हें उदास कर जाए 

चुपचाप हम हस्ते हसते कमरे के अंदर घुस गए 
उनको गोदी में उठाकर सारे गम एक पल के लिए भूल गए
पर मेरे साथ ही वह खुश है इस बात में सच्चाई नहीं है
उसने भी जीना सीख लिया है इसमें कोई दोराहे नहीं है  

मेरा मकसद तो पूरा होगया
एक अकेली लड़की देखी थी
अकेले अकेले रहती थी
सोचा था उसकी ज़िन्दगी में खुशीआं भरदुंगा
सपनो वाला घर दूंगा

अब यह सब पूरा होता दिख रहा है
ज़रूरत उसको मेरी कम ही है
रुक कर उसे दो पल देखा
फिर में निकल गया

हाँ उसे बुरा जरूर लगा होगा
मुझे भला बुरा कहां भी होगा
हम भी नज़रो में दर्द छिपाये
निकल लिए और चुप चाप रहने लग गए 

आज पड़ाव दूसरा है
उसके साथ दुनिया है
मेरा आँगन सूना है

अब ना कोई साथ है
दरमियान हमारे ना जाने अब यह कैसी दीवार है
बस जो सोचा था वह नहीं मिला 
उनको अपना जहाँ मिल गया 
मुझे उनकी हसी में अपना आस्मां मिल गया

पर यह दिल अकेला हो गया
कोई समझने वाला चला गया
में तो बस चुप था
आंखें खामोश थी
दिल पत्थर का था
और सांसे बस चल रही थी
तेज आंधी में 
मेरी उम्मीद की लॉ अभी भी
जल भुज रही थी 
की कभी तो कमी महसूस होगी
तब मेरी उम्मीद का दीपक जल उठेगा
तेज तूफ़ान में लड़ उठेगा 

में लौट कर वापस ाजयुंगा
पर यह  अब हो नहीं हो पायेगा
क्यूंकि किसी से लड़ने के लिए
वह खुद आगे बढ़ सकती है
अपने हक़ के लिए वोह लड़ सकती है
मुझे इसपर गर्व भी है 
मुझे इस बात का फक्र भी है 

और अब क्या बोले बस यही कहना है की 
"मेरी दुआ की रौशनी सदा तेरे साथ रहेगी
जलती भुजती फड़फड़ाती उम्मीद की लॉ मेरी
यादों के दीपक में रोशन मेरा एक जहाँ करती रहेगी  |"


हर्षित
(मुसाफिर)