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Friday 13 April 2012

Kya kahe

क्या कहे 

क्या कहूँ, अलफ़ाज़ नहीं है कहने को कुछ
आदत हो गयी है ऐसे जीने की, मजबूर हो गए हैं कुछ

गलती से गलती हो गयी थोड़ी सी, दिल  हम भी रखते है
चुबन होती है इसमें कुछ 

तेरा प्यार भी जानते हैं और तेरे वादों को भी
गलत तुम भी नहीं हो, सही में भी नहीं 
पर कुछ है जो है मेरे दिल में अजीब सा
जो मुझे भी नहीं मालूम किसी को नहीं पता

आज

शिकवे मुझको भी है तुमको  भी
बस और क्या कहे
मोहब्बत मुझको भी है तुमको भी....


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